
शुभांशु शुक्ला, भारतीय वायु सेना के एक अनुभवी टेस्ट पायलट और इसरो के अंतरिक्ष यात्री, आज भारत के लिए एक ऐतिहासिक नाम बन चुके हैं। वे न केवल भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री हैं, बल्कि पहले भारतीय हैं जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंचे। उनकी यह उपलब्धि भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और वैज्ञानिक प्रगति के लिए एक मील का पत्थर है। यह लेख शुभांशु शुक्ला के जीवन, शिक्षा, करियर, अंतरिक्ष मिशन, और उनकी उपलब्धियों का 2000 शब्दों में विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है।
(shubhanshu shukla)प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
शुभांशु शुक्ला का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से था, और उनके माता-पिता, आशा शुक्ला और शंभु दयाल शुक्ला, ने उन्हें शिक्षा और नैतिक मूल्यों का महत्व सिखाया। शुभांशु ने अपनी स्कूली शिक्षा लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, अलीगंज में पूरी की। वे बचपन से ही पढ़ाई में होनहार थे और विज्ञान, विशेष रूप से अंतरिक्ष विज्ञान, में उनकी गहरी रुचि थी।1999 में कारगिल युद्ध के दौरान, जब शुभांशु मात्र 14 वर्ष के थे, भारतीय सैनिकों की वीरता और देशभक्ति ने उन्हें गहरे रूप से प्रभावित किया। इस युद्ध ने उनके मन में देश सेवा का जुनून जगा दिया। उन्होंने स्वतंत्र रूप से यूपीएससी की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) परीक्षा के लिए आवेदन किया और इसे सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। 2005 में, उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी से कंप्यूटर साइंस में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। यह उनकी शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण की शुरुआत थी।
सैन्य करियर और प्रशिक्षण.
एनडीए से स्नातक होने के बाद, शुभांशु को भारतीय वायु सेना अकादमी में प्रशिक्षण के लिए चुना गया। जून 2006 में, उन्हें भारतीय वायु सेना के फाइटर स्ट्रीम में फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ। उनकी प्रतिभा और समर्पण ने उन्हें जल्द ही एक कुशल पायलट और टेस्ट पायलट के रूप में स्थापित किया। शुभांशु ने विभिन्न प्रकार के विमानों, जैसे सुखोई, मिग, और जगुआर, में लगभग 2000 घंटे की उड़ान का अनुभव प्राप्त किया। उनकी इस विशेषज्ञता ने उन्हें भारतीय वायु सेना में एक सम्मानित स्थान दिलाया।2019 में, शुभांशु को विंग कमांडर के पद पर पदोन्नति मिली, और बाद में वे स्क्वाड्रन कमांडर बने। उनकी नेतृत्व क्षमता और तकनीकी कौशल ने उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनाया। इसरो और भारतीय वायु सेना के बीच सहयोग के तहत, शुभांशु को 2019 में अंतरिक्ष यात्री चयन प्रक्रिया के लिए चुना गया। यह चयन प्रक्रिया भारतीय वायु सेना के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (IAM) द्वारा आयोजित की गई थी।

अंतरिक्ष यात्री के रूप में चयन और प्रशिक्षण
2019 में, इसरो ने भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन, गगनयान, के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया। शुभांशु शुक्ला उन चार फाइनलिस्टों में से एक थे। अन्य तीन अंतरिक्ष यात्री थे: ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजित कृष्णन, और विंग कमांडर सुबंशु श्यामसुंदर। इन चारों को गगनयान मिशन के लिए तैयार करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया।2020 में, शुभांशु और उनके सहयोगी बुनियादी अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण के लिए रूस के गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर, मॉस्को, रवाना हुए। यह प्रशिक्षण 2021 में पूरा हुआ। रूस में प्रशिक्षण के दौरान, उन्हें अंतरिक्ष यात्रा की तकनीकी और शारीरिक चुनौतियों, जैसे माइक्रोग्रैविटी में काम करना, अंतरिक्ष यान संचालन, और आपातकालीन स्थिति से निपटना, का प्रशिक्षण दिया गया। रूस से लौटने के बाद, शुभांशु ने बैंगलोर में इसरो के अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में आगे का प्रशिक्षण लिया।27 फरवरी 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिरुवनंतपुरम में इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में गगनयान मिशन के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों के नामों की आधिकारिक घोषणा की। शुभांशु शुक्ला का नाम इस सूची में शामिल था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
एक्सिओम-4 मिशन: एक ऐतिहासिक यात्रा

शुभांशु शुक्ला का सबसे बड़ा योगदान उनकी एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन में भागीदारी है। यह मिशन नासा, इसरो, एक्सिओम स्पेस, और स्पेसएक्स के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास था। 25 जून 2025 को, शुभांशु ने फ्लोरिडा के नासा केनेडी स्पेस सेंटर से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भरी। यह मिशन भारतीय समयानुसार दोपहर 12:01 बजे लॉन्च हुआ और स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट और ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट का उपयोग किया गया।एक्सिओम-4 मिशन में शुभांशु पायलट की भूमिका में थे। उनके साथ तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री थे: स्लावोश उज्नांस्की-विश्निव्स्की (पोलैंड), टिबोर कपु (हंगरी), और पैगी व्हिटसन (अमेरिका), जो मिशन की कमांडर थीं। यह मिशन भारत, पोलैंड, और हंगरी के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि इन देशों के अंतरिक्ष यात्री 40 वर्षों बाद पहली बार किसी सरकारी प्रायोजित मिशन में ISS पर गए।
मिशन का उद्देश्य और कार्य
एक्सिओम-4 मिशन का उद्देश्य ISS पर 14 दिनों तक रहकर 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग करना था। इनमें से सात प्रयोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अन्य भारतीय संस्थानों द्वारा डिज़ाइन किए गए थे। शुभांशु ने इन प्रयोगों को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा किए गए कुछ प्रमुख प्रयोग निम्नलिखित हैं:
• माइक्रोग्रैविटी में फसल उगाना: इस प्रयोग में छह फसल बीजों का अध्ययन किया गया ताकि अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उनके विकास और आनुवंशिक परिवर्तनों को समझा जा सके। यह भविष्य में अंतरिक्ष में खाद्य उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।
• माइक्रोएल्गी का अध्ययन: शुभांशु ने ISS पर माइक्रोएल्गी की वृद्धि, चयापचय, और आनुवंशिक गतिविधि का अध्ययन किया। यह प्रयोग अंतरिक्ष में ऑक्सीजन उत्पादन और खाद्य आपूर्ति के लिए माइक्रोएल्गी की उपयोगिता को समझने के लिए था।
• टार्डिग्रेड्स (वाटर बेयर) पर शोध: टार्डिग्रेड्स, जो चरम परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए प्रसिद्ध हैं, का ISS पर अध्ययन किया गया। यह प्रयोग अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाओं को समझने में मदद करता है।
• माइक्रोग्रैविटी में मानव मांसपेशियों का अध्ययन: इस प्रयोग में अंतरिक्ष में मांसपेशियों की हानि और माइक्रोग्रैविटी के प्रभावों का विश्लेषण किया गया। यह भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।इनके अलावा, शुभांशु ने भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन भी किया। उन्होंने ISS पर योग सत्र आयोजित किए और भारतीय मिठाइयाँ, जैसे गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा, और आम का रस, अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ साझा किया। यह भारत की समृद्ध संस्कृति को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करने का एक अनूठा अवसर था।
मिशन की चुनौतियाँ
एक्सिओम-4 मिशन की राह आसान नहीं थी। यह मिशन सात बार तकनीकी और मौसम संबंधी कारणों से टला। जैविक नमूनों की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएँ थीं, लेकिन नासा और इसरो ने इसे सुनिश्चित किया कि सभी नमूने सुरक्षित रहें। लॉन्च के दिन, मौसम 90% अनुकूल था, जिसने मिशन की सफल शुरुआत को संभव बनाया।लॉन्च के लगभग 10 मिनट बाद, ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट फाल्कन-9 रॉकेट से अलग हो गया। 28.5 घंटे की यात्रा के बाद, 26 जून 2025 को शाम 04:30 बजे, शुभांशु और उनका दल ISS पर पहुंचा। इस क्षण को लखनऊ में उनके माता-पिता ने भावुक होकर देखा और तालियाँ बजाकर अपनी खुशी व्यक्त की।
भारत के लिए मिशन का महत्व
एक्सिओम-4 मिशन भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह मिशन न केवल भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को दर्शाता है, बल्कि गगनयान मिशन (2026 में प्रस्तावित) की तैयारी के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। गगनयान भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन होगा, जिसमें तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की निचली कक्षा में यात्रा करेंगे। शुभांशु का अनुभव इस मिशन के लिए महत्वपूर्ण होगा।इस मिशन ने भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को भी बढ़ाया। यह पहली बार था कि भारत के वैज्ञानिक प्रयोग किसी निजी अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा बने। भारत ने इस मिशन के लिए 550 करोड़ रुपये खर्च किए, जो देश की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
व्यक्तिगत जीवन और प्रेरणा
शुभांशु शुक्ला एक सादगी भरा जीवन जीते हैं। उनके उपनाम “शक्स” (Shux) से उनके सहयोगी और मित्र उन्हें प्यार से बुलाते हैं। वे एक अनुशासित और समर्पित व्यक्ति हैं, जो अपने लक्ष्यों के प्रति अटल रहते हैं। उनकी प्रेरणा का स्रोत उनके माता-पिता और 1999 का कारगिल युद्ध है।शुभांशु के परिवार में उनकी पत्नी और बच्चे शामिल हैं, जो उनके हर कदम पर उनका समर्थन करते हैं। उनके माता-पिता, विशेष रूप से, उनकी इस उपलब्धि पर गर्व महसूस करते हैं। लखनऊ में उनके घर पर, मिशन के लॉन्च के समय, स्थानीय समुदाय और रिश्तेदारों ने एकत्र होकर इस ऐतिहासिक क्षण का जश्न मनाया।
निष्कर्ष
शुभांशु शुक्ला भारत के उन नायकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा से देश का नाम रोशन किया। 1984 में राकेश शर्मा के बाद, वे दूसरे भारतीय हैं जिन्होंने अंतरिक्ष की सैर की, और पहले भारतीय हैं जिन्होंने ISS पर कदम रखा। उनका एक्सिओम-4 मिशन न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा और वैश्विक सहयोग का प्रतीक भी है।शुभांशु की कहानी हमें सिखाती है कि सपने कितने भी बड़े हों, यदि इरादे मजबूत हों तो उन्हें हासिल किया जा सकता है। उनकी यह यात्रा भारत के लिए एक गर्व का पल है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा।