ईरान और इज़राइल युद्ध: मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव और वैश्विक प्रभाव

प्रस्तावना मध्य पूर्व, जो पहले से ही भू-राजनीतिक तनावों का केंद्र रहा है, एक बार फिर से दो शक्तिशाली देशों—ईरान और इज़राइल—के बीच युद्ध की आग में जल रहा है। जून 2025 तक, यह संघर्ष न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल रहा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा बाजार और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

ईरान और इज़राइल के बीच तनाव की जड़ें ईरान और इज़राइल के बीच तनाव की शुरुआत 1979 की ईरानी इस्लामिक क्रांति से मानी जा सकती है। इससे पहले, दोनों देशों के बीच सहयोगात्मक संबंध थे। इज़राइल और शाह के नेतृत्व वाले ईरान के बीच राजनयिक और व्यापारिक संबंध थे। हालांकि, 1979 में अयातुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन आया। नई इस्लामिक सरकार ने इज़राइल को “गैर-कानूनी यहूदी राज्य” घोषित किया और फिलिस्तीनी मुद्दे को अपने विदेश नीति का केंद्र बनाया।1982 का लेबनान युद्ध 1982 में लेबनान युद्ध के दौरान ईरान ने लेबनानी शिया समूहों, विशेष रूप से हिजबुल्लाह, का समर्थन शुरू किया। हिजबुल्लाह, जो बाद में एक शक्तिशाली सशस्त्र संगठन बन गया, ने इज़राइल के खिलाफ कई हमले किए। यह वह दौर था जब ईरान और इज़राइल के बीच अप्रत्यक्ष युद्ध (proxy war) की शुरुआत हुई।ईरानी परमाणु कार्यक्रम 2000 के दशक में ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने तनाव को और बढ़ाया। इज़राइल ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना और बार-बार ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमले की धमकी दी। 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) ने कुछ समय के लिए तनाव कम किया, लेकिन 2018 में अमेरिका के इस समझौते से हटने के बाद स्थिति फिर बिगड़ गई।सीरिया और प्रॉक्सी युद्ध सीरियाई गृहयुद्ध (2011 से शुरू) में ईरान ने बशर अल-असद की सरकार का समर्थन किया, जबकि इज़राइल ने सीरिया में ईरानी सैन्य उपस्थिति को कम करने के लिए कई हवाई हमले किए। इन हमलों में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के कमांडरों और हिजबुल्लाह के लड़ाकों को निशाना बनाया गया।

2. हाल की घटनाएँ:

युद्ध की शुरुआत (2024-2025) 2023 और 2024 में कई घटनाओं ने ईरान और इज़राइल के बीच तनाव को चरम पर पहुंचाया। इनमें से कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:7 अक्टूबर 2023: हमास का हमला 7 अक्टूबर 2023 को, ईरान समर्थित फिलिस्तीनी संगठन हमास ने इज़राइल पर बड़े पैमाने पर हमला किया, जिसमें लगभग 1,200 इज़राइली नागरिक मारे गए। इस हमले ने इज़राइल-हमास युद्ध को जन्म दिया, जिसने क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया। इज़राइल ने जवाब में गाजा पर बड़े पैमाने पर बमबारी शुरू की और लेबनान में हिजबुल्लाह के ठिकानों को भी निशाना बनाया।अप्रैल 2024: सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला 1 अप्रैल 2024 को, सीरिया में ईरानी दूतावास पर इज़राइली हवाई हमले में IRGC के एक वरिष्ठ कमांडर सहित 11 लोग मारे गए। ईरान ने इसके जवाब में 14 अप्रैल को इज़राइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए। हालांकि, इज़राइल के आयरन डोम और एरो-3 डिफेंस सिस्टम ने अधिकांश हमलों को नाकाम कर दिया।जून 2025: ऑपरेशन राइज़िंग लायन 13 जून 2025 को, इज़राइल ने “ऑपरेशन राइज़िंग लायन” शुरू किया, जिसमें ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए गए। इस ऑपरेशन में 200 लड़ाकू विमानों ने 80 से अधिक ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें ईरान के अराक परमाणु रिएक्टर और फोरडो न्यूक्लियर साइट शामिल थे। इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे “इतिहास के सबसे बड़े सैन्य अभियानों में से एक” बताया।ईरान का जवाब: ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस III ईरान ने इसके जवाब में “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस III” के तहत इज़राइल पर 400 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे। इन हमलों में तेल अवीव, बीरशेबा, और हाइफा जैसे प्रमुख शहरों को निशाना बनाया गया। इज़राइल के सोरोका अस्पताल और तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास को भी नुकसान पहुंचा। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल്ലा खामेनेई ने कहा, “हम सरेंडर नहीं करेंगे।”18 जून 2025 तक की स्थिति 18 जून 2025 तक, युद्ध सातवें दिन में प्रवेश कर चुका था। इज़राइल के हमलों में ईरान में 585 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 90% नागरिक थे। दूसरी ओर, ईरान के मिसाइल हमलों में इज़राइल में 24 लोग मारे गए और 804 घायल हुए। दोनों देशों के बीच वार-पलटवार का सिलसिला जारी है, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ रही है।

3. युद्ध के प्रमुख पहलू सैन्य रणनीति इज़राइल की रणनीति:

इज़राइल ने अपनी वायुसेना और मॉसाद की खुफिया जानकारी का उपयोग करके ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। ऑपरेशन राइज़िंग लायन में IRGC के शीर्ष कमांडरों, जैसे होसैन सलामी और मोहम्मद बघेरी, को मार गिराया गया। इज़राइल का दावा है कि उसने ईरान की मिसाइल क्षमता को काफी हद तक कमजोर कर दिया है। ईरान की रणनीति: ईरान ने अपनी फतह-1 हाइपरसोनिक मिसाइलों और ड्रोनों का उपयोग करके इज़राइल के नागरिक और सैन्य ठिकानों पर हमले किए। हालांकि, इज़राइल के आयरन डोम ने कई हमलों को नाकाम किया। ईरान ने हिजबुल्लाह और यमन के हूती विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी समूहों को भी सक्रिय किया है। नागरिक प्रभाव ईरान: ईरान में इज़राइली हमलों के कारण भारी तबाही हुई है। तेहरान और अन्य शहरों में सड़कों पर सन्नाटा पसरा है, और नागरिकों को भोजन और ईंधन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं। इज़राइल: इज़राइली नागरिकों को बार-बार हवाई हमले के सायरन सुनकर बंकरों में शरण लेनी पड़ रही है। तेल अवीव और बीरशेबा जैसे शहरों में भारी नुकसान हुआ है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया अमेरिका: अमेरिका ने इज़राइल का समर्थन किया है और मध्य पूर्व में F-16, F-22, और F-35 लड़ाकू विमानों की तैनाती बढ़ा दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान को “बिना शर्त आत्मसमर्पण” करने की चेतावनी दी है। रूस: रूस ने इज़राइल के हमलों की निंदा की है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह युद्ध रूस के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि यह यूक्रेन युद्ध से ध्यान हटाता है। रूस ईरान को S-300/S-400 मिसाइलें और खुफिया जानकारी प्रदान कर सकता है। भारत: भारत ने दोनों देशों में फंसे अपने नागरिकों को निकालने के लिए “ऑपरेशन सिंधु” शुरू किया है। 16 जून 2025 को, 100 से अधिक भारतीय नागरिकों को ईरान से आर्मेनिया ले जाया गया।

4. वैश्विक प्रभाव आर्थिक प्रभाव ईरान-इज़राइल युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है:

तेल की कीमतें: मध्य पूर्व में तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों में 7.5% की उछाल आई, जो मार्च 2022 के बाद सबसे बड़ी वृद्धि है। यदि युद्ध लंबा खिंचता है, तो तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं, जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों पर दबाव बढ़ेगा। शेयर बाजार: भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई। निफ्टी और सेंसेक्स में 1% से अधिक की कमी आई, और निवेशकों में चिंता बढ़ गई। सुरक्षा की ओर पलायन: निवेशक सोने और स्विस फ्रैंक जैसे सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। भू-राजनीतिक प्रभाव अमेरिका-ईरान संबंध: ईरान ने अमेरिका के साथ बातचीत की संभावना जताई है, लेकिन सुप्रीम लीडर खामेनेई ने इसे खारिज कर दिया। रूस और चीन: रूस और चीन ने युद्ध को लेकर चिंता जताई है, लेकिन दोनों देश अप्रत्यक्ष रूप से ईरान का समर्थन कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त अरब अमीरात ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से युद्ध को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की है। क्षेत्रीय स्थिरता युद्ध ने मध्य पूर्व में अस्थिरता को और बढ़ा दिया है। लेबनान, सीरिया, और यमन जैसे देश पहले से ही प्रॉक्सी युद्धों का शिकार हैं। यदि यह युद्ध लंबा चला, तो पूरे क्षेत्र में अराजकता फैल सकती है।

5. भारत पर प्रभाव भारत, जो मध्य पूर्व में अपनी ऊर्जा जरूरतों और प्रवासी भारतीयों के कारण गहरा हित रखता है, इस युद्ध से कई तरह से प्रभावित हो रहा है:

ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, जिसमें मध्य पूर्व का बड़ा हिस्सा शामिल है। तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत में महंगाई बढ़ सकती है। प्रवासी भारतीय: ईरान और इज़राइल में हजारों भारतीय नागरिक रहते हैं। भारत सरकार ने दोनों देशों में अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की है और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए ऑपरेशन सिंधु शुरू किया है। आर्थिक प्रभाव: भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है।

6. भविष्य की संभावनाएँ.

युद्धविराम की संभावना फिलहाल, दोनों देशों के बीच युद्धविराम की संभावना कम दिख रही है। ईरान ने युद्धविराम वार्ता को खारिज कर दिया है, जबकि इज़राइल ने और आक्रामक कार्रवाइयों की धमकी दी है।वैश्विक हस्तक्षेप अमेरिका, रूस, और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक खिलाड़ी इस युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने युद्धविराम की संभावना पर जोर दिया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।परमाणु खतरा ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस युद्ध का एक प्रमुख मुद्दा है। इज़राइल का दावा है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के करीब है, जबकि ईरान इसे खारिज करता है। यदि ईरान परमाणु हथियार विकसित करता है, तो यह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

7. निष्कर्ष ईरान और इज़राइल

बीच युद्ध मध्य पूर्व में दशकों से चली आ रही दुश्मनी का परिणाम है। यह संघर्ष न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रहा है। तेल की कीमतों में उछाल, शेयर बाजारों में अस्थिरता, और क्षेत्रीय अराजकता ने वैश्विक समुदाय को इस युद्ध को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया है।भारत जैसे देशों के लिए, यह युद्ध ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता, और अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कूटनीति और बातचीत के जरिए इस संकट का समाधान निकालना होगा, ताकि मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता बहाल हो सके।इस युद्ध के दीर्घकालिक परिणाम अभी अनिश्चित हैं, लेकिन इतिहास हमें सिखाता है कि युद्ध से केवल विनाश और पीड़ा मिलती है। यह समय है कि विश्व नेता एकजुट होकर इस संकट को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाएं।.

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